POETRY AND STORIES
Saturday, May 18, 2019
चलो कुछ अलग कर जाये...
क्या कभी मन नहीं करता की कुछ अलग कर जायें,
की उन गरीबों के पास जाकर दो रोटी उनको भी खिलायें,
ताकि उनके भूखे पेट को कुछ राहत मिल जाए....
सब कहते हैं की सोच तो अलग है मेरी,
लेकिन कोई ये नहीं कहता की चलो अपने देश की गरीबी को मिटायें....
चलो एक बार ठान के देखते हैं, की इन गरीबों की गरीबी से हम लड़ जायें,
सफल हुए तो सही है नहीं तो क्या गम है,
क्या पता अपने देश से कुछ गरीबी कम ही हो जाये....
नौकरी वाले तो बहुत बन जाते हैं,
की चलो हम उन गरीबों के लिए फरिश्ता बन जाएँ...
की चलो अपने देश से गरीबी हटाएँ....
की उन गरीबों के पास जाकर दो रोटी उनको भी खिलायें,
ताकि उनके भूखे पेट को कुछ राहत मिल जाए....
सब कहते हैं की सोच तो अलग है मेरी,
लेकिन कोई ये नहीं कहता की चलो अपने देश की गरीबी को मिटायें....
चलो एक बार ठान के देखते हैं, की इन गरीबों की गरीबी से हम लड़ जायें,
सफल हुए तो सही है नहीं तो क्या गम है,
क्या पता अपने देश से कुछ गरीबी कम ही हो जाये....
नौकरी वाले तो बहुत बन जाते हैं,
की चलो हम उन गरीबों के लिए फरिश्ता बन जाएँ...
की चलो अपने देश से गरीबी हटाएँ....
झूठी सानो शौकत....
लगे हैं दिखाने में अपनी झूठी सानो शौकत,
न जाने ये दुनिया अपनी असली पहचान कब जान पायेगी,
उड़ाते हैं पैसा इस मिटटी के तन पर,
जो एक दिन राख में मिल जाएगी....
लगे हैं यह सभी अपनी सजावट में,
तो उन गरीबों को दुःख से निकलेगा कौन....
की भूखे पेट बच्चो एक हाथ खाना ,
खिलाने को आगे बढ़ाएगा कौन....
न जाने ये दुनिया कब बदल पायेगी,
अपनी असली पहचान न जाने कब जान पायेगी....
न जाने ये दुनिया अपनी असली पहचान कब जान पायेगी,
उड़ाते हैं पैसा इस मिटटी के तन पर,
जो एक दिन राख में मिल जाएगी....
लगे हैं यह सभी अपनी सजावट में,
तो उन गरीबों को दुःख से निकलेगा कौन....
की भूखे पेट बच्चो एक हाथ खाना ,
खिलाने को आगे बढ़ाएगा कौन....
न जाने ये दुनिया कब बदल पायेगी,
अपनी असली पहचान न जाने कब जान पायेगी....
जरा ठहर मेरे मंजिल....
जरा ठहर मेरे मंजिल मैं तुझे पा लूंगी,
अपनी कीमत इस दुनिया को मैं बता दूंगी,
की लड़ जाऊंगी अपनी खराब किस्मत से,
की अपनी मेहनत पे भरोसा तुझे दिला दूंगी,
राहो में दुख ही दुख है तो क्या हुआ,
अपने मंजिलों पे जाकर मैं तुझे दिखा दूंगी....
ऐ मेरे मन तू कब तक रोयेगा मैं तुझे हँसा दूंगी,
ऐ दुनिया जो तू नाकारा मुझे कहा करती है,
जरा रुक मैं अपनी असली कीमत तुझे बता दूंगी,
हौसला मेरे मन में है की मैं अपने मंजिलो को पा लुंगी...
अपनी कीमत इस दुनिया को मैं बता दूंगी,
की लड़ जाऊंगी अपनी खराब किस्मत से,
की अपनी मेहनत पे भरोसा तुझे दिला दूंगी,
राहो में दुख ही दुख है तो क्या हुआ,
अपने मंजिलों पे जाकर मैं तुझे दिखा दूंगी....
ऐ मेरे मन तू कब तक रोयेगा मैं तुझे हँसा दूंगी,
ऐ दुनिया जो तू नाकारा मुझे कहा करती है,
जरा रुक मैं अपनी असली कीमत तुझे बता दूंगी,
हौसला मेरे मन में है की मैं अपने मंजिलो को पा लुंगी...
Sunday, April 28, 2019
आज खुश हूँ...
आज खुश हूँ की मौसम बदल सा रहा है,
कष्टों का ये बादल टल सा रहा है...
मेरा मन खुसी से उछल सा रहा है,
मुझे जीवन जीने की तमन्ना फिर से हुई है,
ऐसा लगता है किस्मत बदल सा रहा है....
खुशियां क्या होती हैं मैं भूल सी गयी थी,
दुःख में ही अपने झूल सी गयी थी,
पर देखा जो खुशियों को आते हुए तो,
मेरा मन ये दुःख से निकल सा रहा है....
आसमां छूने की तमन्ना फिर से हुई है,
मेरा मन ये आस लिए फिर चल पड़ा है,
मेरा मन ये खुशी से उछल सा रहा है....
कष्टों का ये बादल टल सा रहा है...
मेरा मन खुसी से उछल सा रहा है,
मुझे जीवन जीने की तमन्ना फिर से हुई है,
ऐसा लगता है किस्मत बदल सा रहा है....
खुशियां क्या होती हैं मैं भूल सी गयी थी,
दुःख में ही अपने झूल सी गयी थी,
पर देखा जो खुशियों को आते हुए तो,
मेरा मन ये दुःख से निकल सा रहा है....
आसमां छूने की तमन्ना फिर से हुई है,
मेरा मन ये आस लिए फिर चल पड़ा है,
मेरा मन ये खुशी से उछल सा रहा है....
सो गया है बचपन....
सो गया है बचपन पत्थरों में सिमट कर,
अब तो रातों में भी पत्थरों की आवाजें सुनाई पड़ती है....
देखा था बच्चो को काम पर जाते हुए,
उनकी उम्र तो अभी खेल कूद की जनाई पड़ती है,
इस दुनिया में भी लोग दुहरा रंग रखते हैं,
यूँ तो कहते हैं हमारा देश प्यारा है बड़ा,
लेकिन उसी देश के भविष्य को खराब करने की सोच रखते हैं....
जिन हाथो में कलम सोभा देती उन हाथो में छाले हैं,
खेल कूद की आसा भी दब के रह जाती है....
किसी ने सोचा नही जरा सी मदद कर दे,
काम पर जाते बच्चो की वो भी तो अच्छा जीवन जीने का पूरा हक रखते हैं....
अब तो रातों में भी पत्थरों की आवाजें सुनाई पड़ती है....
देखा था बच्चो को काम पर जाते हुए,
उनकी उम्र तो अभी खेल कूद की जनाई पड़ती है,
इस दुनिया में भी लोग दुहरा रंग रखते हैं,
यूँ तो कहते हैं हमारा देश प्यारा है बड़ा,
लेकिन उसी देश के भविष्य को खराब करने की सोच रखते हैं....
जिन हाथो में कलम सोभा देती उन हाथो में छाले हैं,
खेल कूद की आसा भी दब के रह जाती है....
किसी ने सोचा नही जरा सी मदद कर दे,
काम पर जाते बच्चो की वो भी तो अच्छा जीवन जीने का पूरा हक रखते हैं....
माँ की आँखों में....
माँ की आँखों में एक आस दिख रही थी,
ना जाने कैसी विश्वास दिख रही थी....
मानो जैसे उसकी आंखे मुझसे कुछ कह रही थी,
सीख दे रही थी, मन में आस भर रही थी,
की कर लेगी बेटा तू कुछ तो अलग है,
मेरी माँ मुझमें एक विस्वास भर रही थी...
बचपन से आज तक माँ ही वो इंसान है,
जो मेरे दुःख में रोइ है, मेरे सुख में हँसती है
उसी से तो मुझको एक सीख मिल रही है,
की दुःख में छोड़ो ना किसी का साथ मेरी माँ कह रही है....
माँ की आँखों में एक आस दिख रही थी....
ना जाने कैसी विश्वास दिख रही थी....
मानो जैसे उसकी आंखे मुझसे कुछ कह रही थी,
सीख दे रही थी, मन में आस भर रही थी,
की कर लेगी बेटा तू कुछ तो अलग है,
मेरी माँ मुझमें एक विस्वास भर रही थी...
बचपन से आज तक माँ ही वो इंसान है,
जो मेरे दुःख में रोइ है, मेरे सुख में हँसती है
उसी से तो मुझको एक सीख मिल रही है,
की दुःख में छोड़ो ना किसी का साथ मेरी माँ कह रही है....
माँ की आँखों में एक आस दिख रही थी....
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