लगे हैं दिखाने में अपनी झूठी सानो शौकत,
न जाने ये दुनिया अपनी असली पहचान कब जान पायेगी,
उड़ाते हैं पैसा इस मिटटी के तन पर,
जो एक दिन राख में मिल जाएगी....
लगे हैं यह सभी अपनी सजावट में,
तो उन गरीबों को दुःख से निकलेगा कौन....
की भूखे पेट बच्चो एक हाथ खाना ,
खिलाने को आगे बढ़ाएगा कौन....
न जाने ये दुनिया कब बदल पायेगी,
अपनी असली पहचान न जाने कब जान पायेगी....
न जाने ये दुनिया अपनी असली पहचान कब जान पायेगी,
उड़ाते हैं पैसा इस मिटटी के तन पर,
जो एक दिन राख में मिल जाएगी....
लगे हैं यह सभी अपनी सजावट में,
तो उन गरीबों को दुःख से निकलेगा कौन....
की भूखे पेट बच्चो एक हाथ खाना ,
खिलाने को आगे बढ़ाएगा कौन....
न जाने ये दुनिया कब बदल पायेगी,
अपनी असली पहचान न जाने कब जान पायेगी....
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